सांख्यिकीय माध्यों के प्रकार - Types of Statistical Means

सांख्यिकीय माध्यों के प्रकार - Types of Statistical Means

सांख्यिकीय माध्यों के प्रकार - Types of Statistical Means


यहां केवल उन्हीं प्रकारों का उल्लेख किया जाएगा, जिनका प्रयोग सामाजिक शोध में तथ्यों के विश्लेषण और विवेचन की दृष्टि से विशिष्ट तौर पर किया जाता है.


◆ अंकगणितीय अथवा समांतर माध्य अथवा मध्यमान अथवा औसत


इसका प्रयोग सामाजिक शोध में सबसे अधिक मात्रा में किया जाता है। यह वह मूल्य है जोकि किसी श्रेणी के सभी पदों के मूल्यों को उनकी संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है। यह एक ऐसा सरल व संक्षिप्त अंक होता है जो श्रेणी के प्रमुख लक्षणों को व्यक्त करता है -


• घोष और चौधरी के अनुसार -  


"यह वह परिणाम है जो कि किसी चर/परिवर्त्य में पदों के मूल्यों के योग को उनकी संख्या से भाग देकर प्राप्त होता है।”


• सिम्पसन और काफ्का के शब्दों में -


“केन्द्रीय प्रवृत्ति का माप एक ऐसी प्रतिरूपी मूल्य है जिसके चारों ओर अन्य संख्याएँ संकेन्द्रित होती हैं।"


• क्लार्क और शेकाडे के अनुसार -


"माध्य, तथ्यों के सम्पूर्ण समूह का विवरण प्रस्तुत करने हेतु एक अकेला अंक प्राप्त करने का प्रयत्न है।" 


• काक्सटन और काउडन के शब्दों में -


"माध्य, तथ्यों के विस्तार के अंतर्गत स्थित एक ऐसा मूल्य है जिसका प्रयोग श्रेणी के सभी मूल्यों के प्रतिनिधित्व के तौर पर किया जाता है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समांतर माध्य वास्तव में समस्तपदों का औसत मूल्य होता है जिसे समस्त पदों के योग में समस्त पदों की संख्या से भाग देकर प्राप्त किया जाता है।


◆ माध्यिका अथवा मध्यांक


माध्यिका अथवा मध्यांक किसी पद श्रेणी का वह बिन्दु होता है जो समग्र को दो बराबर भागों में वर्गीकृत कर देता है। इसके लिए सभी पदों को आरोही अथवा अवरोही क्रमों में व्यवस्थित कर लिया जाता है। यह वह पद-मूल्य है जोकि आरोही अवरोही में व्यवस्थित करके श्रेणी को दो बराबर भागों में वर्गीकृत करता है।


• कोनर के शब्दों में -


"मध्यांक श्रेणी का वह पद-मूल्य है जो समूह को दो बराबर भागों में इस प्रकार से विभाजित करता है कि एक भाग के सभी मूल्य मध्यांक से कम और दूसरे भाग के सभी मूल्य "अधिक हों।"


• डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार -


"यदि एक श्रेणी के पदों को उनके परिणामों के आधार पर आरोही और अवरोही क्रमों से लगाया जाए तो बिल्कुल बीच वाली राशि के माप को मध्यांक कहा जाता है।”


• घोष और चौधरी के अनुसार-


"मध्यांक श्रेणी में उस पद का मूल्य है जोकि श्रेणी को दो बराबर भागों में विभाजित करता है, जिसमें से एक भाग के मध्यांक कम से कम और दूसरे भाग में मध्यांक से अधिक मूल्य होते हैं।"


• सेक्रिस्ट के अनुसार-  


एक श्रेणी की माध्यिका के आधार पर क्रमबद्ध करने पर उस पद का अनुमानित अथवा वास्तविक मूल्य है जो वितरण को दो भागों में विभाजित कर देता है।” उपर्युक्त वर्णित परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मध्यांक केंद्रीय मूल्य होता है जोकि श्रेणी के पदों को दो बराबर भागों में वर्गीकृत करता है।


◆ बहुलक अथवा भूयिष्ठक


बहुलक अंग्रेजी के शब्द 'मोड' का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसकी उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के शब्द 'LaMode से हुई है। इसका अर्थ फैशन अथवा रिवाज होता है अर्थात यह वह पद है जिसका प्रचलन अधिक होता है। बहुलक वह मूल्य है जिसका समस्त पदों में उपयोग सबसे अधिक बार होता है अथवा जिसकी आवृत्ति सबसे अधिक होती है। 


• जीजेक के अनुसार-  


"बहुलक वह मूल्य है जो समूह में सबसे अधिक बार आता है और जिसके चारों ओर सबसे अधिक घनत्व वाले पदों का जमाव हो। " 


• गिलफोर्ड के शब्दों में - 


“बहुलक माप के पैमाने पर वह बिन्दु है, जहां कि एक वितरण में सर्वाधिक आवृत्ति होती है।"


• प्रो. टुटले के अनुसार -


"बहुलक वह मूल्य है जिसके एकदम आस-पास आवृत्ति घनत्व अधिकतम होता है। "


• बोडिंगटन के अनुसार - 


“बहुलक को महत्वपूर्ण प्रकार, रूप अथवा पद का आकार अथवा सबसे अधिक घनत्व की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”


• काक्सटन एवं काउडेन के शब्दों में -


“एक वितरण का बहुलक वह मूल्य है जिसके निकट श्रेणी की इकाइयां अधिक से अधिक केन्द्रित होती हैं। उसे श्रेणी का सर्वाधिक प्रतिरूपी अथवा विशिष्ट मूल्य माना जा सकता है।"


उपर्युक्त वर्णित परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि बहुलक वह मूल्य है जिसकी आवृत्ति समस्त पदों में सर्वाधिक बार होती है और साथ ही इसके चारों ओर सर्वाधिक पदों का जमाव रहता है।