अहिंसा : अर्थ एवं परिभाषा - Ahimsa Meaning and Definition

अहिंसा : अर्थ एवं परिभाषा - Ahimsa Meaning and Definition

इतिहास की शुरुआत से ही समाज में संघर्ष विद्यमान रहे हैं और मनुष्य इस संघर्ष के खिलाफ आवाज उठाता रहा है। इन संघर्षों से निपटने के दो तरीके हैं। पहला हिंसक प्रतिरोध यहाँ एक बात गौर करने की है कि हिंसा द्वारा समाधान किये जाने पर जीत ज्यादा हिंसा करनेवाले की होती है फिर यह जरूरी नहीं है कि वह सही पक्ष की जीत हो। हिंसा के दौरान जो जान-माल का नुकसान होता है उसकी भरपाई करना भी संभव नहीं है।


महात्मा गांधी ने संघर्ष के समाधान के लिए हिंसक प्रतिरोध के बरअक्स जो मार्ग बताया वह सक्रिय अहिंसक प्रतिरोध का रास्ता है जिसे वह सत्याग्रह का नाम देते हैं। अपनी प्रविधि में अहिंसक प्रतिरोध कई तरीकों को शामिल करती है ये हैं असहयोग, सविनय अवज्ञा, हड़ताल धरना, उपवास आदि।


• अहिंसा का सामान्य अर्थ किसी दूसरे व्यक्ति अथवा जीव को कष्ट न पहुंचाने की भावना एवं क्रिया है। गांधी जी के दृष्टि में मन, वचन एवं कर्म से दूसरे को कष्ट न पहुंचाना ही अहंसा है। गांधी जी के अनुसार अपने विशुद्धतम रूप में अहिंसा का अर्थ है अधिकतम प्रेमाबेअहिंसा को ईश्वर तक पहुंचने के स्रोत्र के रूप में देखतेथे। जैन धर्म की सबसे बड़ी बात यह है कि उसमें सबसे ज्यादा बल अहिंसा पर दिया गया है।


बौद्ध धर्म भी विश्व शांति की बात इसी अहिंसा पर करता है। इस तरह हिंसा का आभार ही अहिंसा है। जहाँ शांति है वहाँ अहिंसा है और जहाँ अहिंसा है वहाँ शांति है। इससे स्पष्ट होता है कि जहाँ जहाँ आज दुनिया में अशांति है वहाँ हिंसा मानसिक, वाचिक एवंकार्तिक रूप में विद्यमान है। गांधी एक व्यावहारिक आदर्शवादी :- महात्मा गांधी सिर्फ आदशों की बात नहीं करते थे।


 ये पूर्ण में व्यावहारिक आदर्श की बात करते थे। एक ऐसे आदर्श की स्वीकृति गांधीजी देते थे जो लोक जीवन में उतारा जा सके। वे कहते है कि उस सिद्धांत की कोई प्रासंगिकता नहीं जिसे व्यवहार में न उतारा जा सके। वे पेट के अपच से ज्यादा नुकसानदेह विचारों के अपच को मारते थे। गांधी का जीवन पूर्णतः सिद्धांत एवं व्यवहार का पूर्ण समन्वय था। गांधी जी कहते है कि यदि हम अहिंसा के सिद्धांत को सिद्ध कर सके तो इसे संसार की उसकीकाया पलटने, निर्मन प्रतियोगिका को समाप्त करने और धनलोलुपता तथा लालच से उत्पन्न होने वाले सामाजिक विघटन को रोकने के सर्वोत्तम साधन के रूप में पेश कर सकते हैं। गांधी के इन बातों से पता चलता है कि अहिंसा उनके लिए दुनिया बदलने की सर्वोतम साधन थी। वे यह भी कहा करते थे कि मेरे जीवन का मार्गदर्शन सिद्धांत निष्क्रियता नहीं अपितु अधिकतम सक्रियता है। अतः कहना उचित है कि गांधीजी सिद्धांतों की कोरी कल्पना के बजाय व्यवहारिकता के धरातल पर रहना पसंत करते थे। महात्मा गांधी प्रयोगधर्मी व्यक्तित्व को धारण करते थे। वे जो कुछ भी औरों के जीवन में बदलाव देखना चाहते थे सर्वप्रथम उसे खुद 4 के जीवन पर प्रयोग करके देखते थे। उनका जीवन उनके लिए पूर्णतः एक प्रयोगशाला था।

जहाँ सिद्धांत एवं नियमों की खुद चीड़-फाड़ करते थे फिर उसके प्रासंगिकता एवं अप्रासंगिकता के आधार पर स्वयं के जीवन एवं जन-जीवन में लागू करने की बात करते थे। अहिंसा गांधी के जीवन का मूल सिद्धांत था। वे इस सिद्धांत को अपने जीवन में लागू अक्षरशः किये हुए थे। वे इस 'अहिमा' के सिद्धांत को लोक जीवन में उतारे की बात करते थे। वे इस अहिंसा के सिद्धांत को लोक जीवन में उतारे की बात करते थे। वे कहते थे कि इस शांत संसार की मुक्ति हिंसा में नहीं अपितु अहिंसा में हैं।