रेडिकल स्त्रीवाद - radical feminism
रेडिकल स्त्रीवाद - radical feminism
आइए अब रेडिकल स्त्रीवाद के बारे में जानते हैं। क्या आपको पता है कि स्त्रीवाद की इस धारा को रेडिकल स्त्रीवाद क्यों कहा गया? दरअसल रेडिकल स्त्रीवाद, स्त्रीवाद की एक ऐसी विचारधारा एवं दृष्टिकोण है जो कि समाज में विभिन्न स्तरों पर व्याप्त पुरुषवर्चस्व को क्रांतिकारी तरीके से समाप्त करने की प्रतिबद्धता के रूप में जाना जाता है। रोज मायर के अनुसार रेडिकल स्त्रीवादी, स्त्रियों के शोषण का मूलभूत कारण सेक्स और जेंडरगत मान्यताओं की व्यापकता को मानते हैं। जेंडर स्त्री-पुरुष संबंधों पर आधारित सामाजिक निर्मिति होती है, जो पितृसत्तात्मक संरचना को मज़बूती प्रदान करने का काम करती है। रेडिकल स्त्रीवादी विचारकों ने समाज में व्याप्त लिंग आधारित स्त्री-पुरुष की भूमिकाओं से जुड़े मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से इन बातों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है कि किस प्रकार विवाह, परिवार, यौनिकता, विषमलैंगिकता, वेश्यावृत्ति आदि लिंग आधारित भूमिकाओं को प्रसारित करते हैं। रेडिकल स्त्रीवाद का यह भी मानना है कि पितृसत्तात्मक सामाजिक परिवेश में स्त्री-पुरुष संबंध वर्चस्व और शोषण आधारित होते हैं।
प्रारंभिक रेडिकल स्त्रीवादी जो नागरिक अधिकार और युद्ध विरोधी आंदोलनों पर केंद्रित नववामपंथी संगठनों में सक्रिय थीं। पारंपरिक संस्थाओं की तरह लैंगिक भेदभाव तथा जेंडरगत दुराग्रहों के चलते प्रतिरोध स्वरूप पुरुषों से इतर अपने छोटे-छोटे स्त्री समूह बनाकर कार्य करने लगीं। ये शुरुआती से रेडिकल स्त्रीवादी समूह कटु बोलने, उग्र व्यवहार करने आदि के लिए जाने जाते थे। वस्तुतः 1960 और 70 के दशक के मध्य में हुए आधुनिक रेडिकल स्त्रीवाद के उदय में उस दौरान की तीन पुस्तकों की अहम भूमिका रही, जिनमें से पहली सिमोन द बेउआर की पुस्तक द सेकेंड सेक्स थी जो 1949 में फ्रेंच तथा 1953 में अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई। इसने स्त्रीवाद की एक समझ विकसित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया उन्होंने कहा सेक्स को जेंडर से अलग समझना चाहिए। रेडिकल स्त्रीवाद की सैद्धांतिक बहस को और मुखर करने में केट मिलेट की सेक्सुअल पॉलिटिक्स जो कि 20वीं सदी के अमेरिकन, फ्रेंच एवं अंग्रेज़ी साहित्य में व्याप्त यौन संबंधी विषयवस्तुओं और रोमांटिसिज्म का विद्वतापूर्ण अध्ययन प्रस्तुत करती है।
शुलामिथ फायरस्टोन की पुस्तक द डायलेक्टिक्स ऑफ सेक्स जो पितृसत्ता के इतिहास का विश्लेषण ऐतिहासिक भौतिकवाद की मार्क्सवादी पद्धति के आधार पर करती है, जिसमें उन्होंने आर्थिक वर्ग संघर्ष और लिंग-वर्ग संघर्ष की समानताओं की तुलना की है। वैसे तो रेडिकल स्त्रीवादी सिद्धांत का विकास 70 के बाद हुआ, लेकिन इन स्रोतों और रचनाओं का इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा है। रेडिकल स्त्रीवाद के संदर्भ में एक बात और ध्यान रखने योग्य है, वह यह है कि रेडिकल स्त्रीवाद का विस्तार अलग-अलग रूपों अथवा क्षेत्रों में हुआ। रेडिकल स्त्रीवादियों की दो उपधाराएं प्रमुखता से जानी जाती हैं।
1. रेडिकल उदारवादी स्त्रीवादी
इनका मानना है कि स्त्रियों के शोषण और दमन का प्रमुख कारण पितृसत्तात्मक व्यवस्था है न कि व्यक्तिगत तौर पर पुरुष। रेडिकल उदारवादी स्त्रीवादी लिंग और सेक्स में भेद करते हु हुए मानती हैं,
पुरुष वर्चस्व वाले सामाजिक संरचना में स्त्रियों पर कठोर यौन संबंधी नियम लगाए जाते हैं। इन कठोर नियमों का विरोध करते हुए ये कहती हैं कि स्त्रियों को अपनी यौन प्राथमिकताओं को चुनने की पूरी आजादी होनी चाहिए। साथ ही ये एकल परिवार के स्थान पर संयुक्त परिवार को वरीयता देती हैं। मातृत्व / ममता/ममतामयी जैसी स्टीरियोटाइप(रूढ़िवादी) संकल्पनाओं को तोड़ने के लिए मातृत्व के अन्य विकल्पों को सुझाती हैं। ये जेंडर को सेक्स से बिल्कुल अलग पाती हैं और कहती है, पुरुषवादी समाज में जड़ीभूत जेंडर क़ानून अथवा मान्यताएँ स्त्रियों को निष्क्रिय/दब्बू और पुरुषों को सक्रिय रूप में प्रस्तुत करने का काम करते हैं।
2. रेडिकल सांस्कृतिक स्त्रीवादी
इनके अनुसार विषमलैंगिकता स्त्रियों के ऊपर पुरुषों के वर्चस्व का माध्यम है। ये पारंपरिक विवाह संस्थाओं को भी इस लिहाज से चुनौती देती हैं, क्योंकि यह विषमलैंगिक संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है। रेडिकल सांस्कृतिक स्त्रीवादियों के अनुसार इसी पुरुष वर्चस्व की वजह से बलात्कार, यौनिक हिंसा एवं वेश्यावृत्ति जैसी क्रूरताओं से स्त्रियों को जूझना पड़ता है। ये स्त्रीवादियों को समलैंगिक होने पर भी जोर देती हैं। इस विचारधारा के मुताबिक अश्लील साहित्य भी पुरुषों को स्त्रियों पर हिंसा करने के लिए प्रेरित करता है।
शार्लोट बंच समलैंगिकता के संदर्भ में लिखती हैं कि दरअसल समलैंगिक होने का अर्थ है विषमयौनिकता के साथ जुड़ाव, उस पर निर्भरता और उसके समर्थन का निषेध।
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