फर्म के समापन की विधियाँ - Methods of winding up a firm
फर्म के समापन की विधियाँ - Methods of winding up a firm
फर्म की समाप्ति निम्नलिखित दशाओं में से किसी के द्वारा हो सकती है :
1. ठहराव अथवा समझौते द्वारा समाप्ति किसी भी फर्म को सभी साझेदारों की सहमति से अथवा साझेदारों के बीच किसी अनुबंध के अनुसार समाप्त किया जा सकता है।
2. अनिवार्य समाप्ति - निम्नलिखित अवस्थाओं में से किसी एक के द्वारा फर्म की अनिवार्य रूप से समाप्ति हो जाती है:
i. जब किसी घटना के घटित होने के कारण फर्म का व्यापार अवैधानिक हो जाय।
ii. जब सभी साझेदार या एक को छोड़कर शेश साझेदार दिवालिया घोषित कर दिये जाय ।
3. कुछ संयोगों अथवा आकस्मिक घटनाओं के घटित होने की दशा में समाप्ति – यदि साझेदारों के बीच इसके विपरीत कोई अनुबंध न हो, तो निम्नलिखित दशाओं में फर्म की समाप्ति हुई समझी जाएगी।
i. यदि फर्म की किसी एक या अधिक कार्यों के लिए स्थापना की गई हो तो उसके पूरा होने पर
ii. यदि फर्म की किसी निश्चित अवधि के लिए स्थापना की गई हो तो उस अवधि के बीतने पर
iii. किसी एक साझेदार की मृत्यु होने पर; तथा
iv. किसी साझेदार के दिवालिया घोषित होने पर
4. ऐच्छिक साझेदारी में सूचना द्वारा समाप्ति ऐच्छिक साझेदारी में कोई भिसझेदार दुसरे सभी साझेदारों को फर्म को समाप्त करने की अपनी इच्छा को लिखित सूचना देकर फर्म को समाप्त कर सकता है।
फर्म सूचना में दी गई समाप्ति की तिथि से समाप्त हुई मानी जाएगी अथवा यदि कोई निश्चित तिथि न हो तो, सूचना के पहुँचने की तिथि से ही फर्म का अंत माना जायेगा ।
5. न्यायालय द्वारा समाप्ति किसी साझेदार द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने पर न्यायालय निम्नलिखित आधारों में से किसी भी आधार पर फर्म की समाप्ति का आदेश दे सकता है:
1. किसी साझेदार के अस्वस्थ मस्तिष्क का हो जाने पर यदि कोई साझेदार अस्वस्थ मस्तिष्क का हो जय तो फर्म का अंत स्वतः नहीं होता है। ऐसी स्थिति में वाद उसके किसी मित्र द्वारा अथवा किसी एनी साझेदार द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। वाद प्रस्तुत होने के पश्चात न्यायालय फर्म को समाप्त करने का आदेश दे सकता है।
ii. किसी साझेदार के स्थायी रूप से योग्य होने पर यदि कोई साझेदार, साझेदार के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने मने स्थायी रूप से असमर्थ हो जाता है, तो न्यायालय किसी भी दुसरे साझेदार द्वारा वाद प्रस्तुत करने पर फर्म को समाप्त करने का आदेश दे सकता है।
iii. किसी साझेदार के दुराचरण का दोषी होने पर यदि कोई साझेदार किसी ऐसे दुराचरण का दोषी हो जिससे कारोबार के संचालन में हानि होने की आशंका हो तो किसी दुसरे साझेदार द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने पर न्यायालय फर्म को समाप्त करने का आदेश दे सकता है।
iv. किसी साझेदार द्वारा जान-बूझकर ठहराव भंग करने पर यदि कोई साझेदार जान-बूझकर फर्म के प्रबंधन से संबंधित मामलों में ठहराव भंग करता है तो न्यायालय किसी अन्य साझेदार द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने पर फर्म को समाप्त करने का आदेश दे सकता है।
V. किसी साझेदार के भाग हस्तांतरण होने, कुर्की होने अथवा बिकने पर यदि किसी साझेदार ने किसी प्रकार से फर्म से अपना समस्त हित किसी तृतीय पक्षकार को हस्तांतरित कर दिया है अथवा अपने हिस्से पर प्रभार स्थापित करने की अनुमति दे दी है, तो न्यायालय किसी अन्य साझेदार द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने पर फर्म को समाप्त करने का आदेश दे सकता है।
vi. निरंतर हानिप्रद कारोबार होने पर यदि फर्म के कारोबार में निरंतर हानि हो रही है तथा लाभ होने की संभावना नहीं है, तो न्यायालय फर्म को समाप्त करने का आदेश दे सकता है। समाप्ति उचित एवं न्यायपूर्ण होने पर यदि किसी अन्य आधार पर फर्म की समाप्ति करना उचित एवं न्यायपूर्ण हो तो न्यायालय फर्म को समाप्त करने का आदेश दे सकता है।
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