व्यर्थ एवं व्यर्थनीय अनुबंध - voidable contract
व्यर्थ एवं व्यर्थनीय अनुबंध - voidable contract
वैध अनुबंध होने के किये पाचवां महत्वपूर्ण लक्षण है संबंधित पक्षकारों के मध्य ही ठहराव हो और वह ठहराव अनुबंध अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप में व्यर्थ घोषित न किया गया हो। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 2(g) के अनुसार, “ठहराव जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होता, व्यर्थ होता है।" इस तरह के ठहरावों को किसी भी पक्षकार द्वारा कानूनी रूप से प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सकता है। इस तरह के ठहरावों में कहीं न कहीं कानूनी रूप से किसी पहलू में कमी होती है। संभवतः यही सबसे बड़ा कारण है कि इसे कानून द्वारा लागु नहीं कराया जा सकता है और यह पूर्णतया व्यर्थ हो जाता है। व्यर्थ ठहराव पक्षकारों के मध्य किसी भी प्रकार के वैधानिक संबंध उत्पन्न नहीं करते हैं। इस तरह के ठहराव शुरुआत से ही पूर्णतया व्यर्थ होते हैं
क्योंकि ये किसी भी पक्षकार के संबंध में न तो अधिकार प्रदान करते हैं और न ही दायित्वों का बोध करते हैं।
व्यर्थ ठहराव निम्नलिखित हैं :
i. अयोग्य पक्षकारों द्वारा किया गया ठहराव ।
ii. उभय पक्षीय तथ्य संबंधी गलती से प्रभावित ठहराव
iii. अवैधानिक प्रतिफल अथवा उद्देश्य पर आधारित
iv. ठहराव आंशिक रूप से अवैधानिक प्रतिफल अथवा उद्देश्य
V. बिना प्रतिफल के ठहराव ।
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