कार्यशील पूंजी का अर्थ - Meaning of Working Capital
कार्यशील पूंजी का अर्थ - Meaning of Working Capital
व्यवसाय के संचालन से सम्बन्धित दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ सम्पत्तियों की आवश्यकता होती है। इन सम्पत्तियों में रोकड़, प्राप्त विपत्र, विनियोग, कच्चा माल, निर्मित माल एवं अल्पकालीन ऋण आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन सम्पत्तियों में विनियोजित पूंजी को कार्यशील पूंजी कहते हैं। कार्यशील पूंजी व्यवसाय के दिन-प्रतिदिन के आवश्यकताओं की पूर्ति एवं प्रगति हेतु स्थिर सम्पत्तियों के लिए आवश्यक पूंजी के साथ-साथ चालू सम्पत्तियों के लिए भी पर्याप्त पूंजी की व्यवस्था करती है। किसी भी कोष की प्राप्ति जो चालू सम्पत्तियों को बढ़ाता है। उस कोष को कार्यशील पूंजी की संज्ञा दी जाती है।
कार्यशील पूँजी की अवधारणा (Concept of Working Capital) - किसी भी व्यवसाय को दो प्रकार
की पूंजी की आवश्यकता होती है - १) अचल पूंजी, २) कार्यशील पूंजी अचल पूंजी का उपयोग, व्यवसाय में उत्पादन की आधारिक संरचना (infrastructure) की व्यवस्था, के लिए किया जाता है। जैसे की ज़मीन, मशीनरी, फर्नीचर, आदि की खरीद करना। इस अचल पूंजी से ही व्यवसाय की अचल संपत्ति का निर्माण होता हैं जो लंबी अवधि के लिए व्यवसाय में निवेश की जाती हैं। पूँजी का इन सम्पत्तियों में किया गया विनियोग स्थिर पूँजी भी कहलाता है इसकी प्रकृति दीर्घकालीन एवं स्थायी होती है।
कार्यशील पूंजी का उपयोग व्यवसाय के नियमित व्ययों (day-to-day expenses) के लिए किया जाता है। जैसे की - उत्पादन के लिए कच्चा या मध्यवर्ती माल खरीदना,
मज़दूरी भुगतान करना, और अन्य उत्पादन से जुड़े खर्चे का भुगतान करना। कार्यशील पूंजी का मुख्य उपयोग व्यवसाय की कम अवधि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए होता हैं।
कार्यशील पूंजी को लघु अवधि की संपत्ति स्रोतों में निवेश किया जाता हैं यानि कि ऐसी संपत्ति जो १२ महीनों के अंदर नगदी में परिवर्तित की जा सकें, जैसे की नगद (cash), बैंक (bank), विपण्य प्रतिभूतियां (marketable securities), स्टॉक (stock), प्राप्य विपत्र (bills receivables), देनदार (debtors), प्रीपेड व्यय (prepaid expenses), अर्जित आय (accrued incomes), आदि। इस संपत्ति को वर्तमान संपत्ति (current assets) भी कहा जाता हैं।
कार्यशील पूंजी, व्यवसाय को संचालित करने की लागत के लिए आवश्यक धनराशि है।
कार्यशील पूंजी को चालू पूँजी भी कहा जाता है, इसीलिए यह परिवर्तनशील होती है। नकद से कच्चा माल खरीदना, उत्पादन प्रक्रिया द्वारा माल निर्मित करना, बेचना, देनदारों से पैसे वसूल करना इस तरह क्रम चलता रहता है। इसे चक्रीय पूँजी भी कहा जाता है। इनमें विनियोग बारम्बार होता रहता है।
चालू सम्पत्तियों / चालू पूँजी का प्रबन्ध दिन-प्रतिदिन की प्रक्रिया है। इनका प्रबंध एक विशिष्ट और बारम्बारता का कार्य है। अतः इसे कार्यशील पूँजी भी कहा जाता है। विद्वानों ने कार्यशील पूँजी की विभिन्न दृष्टिकोणों से व्याख्या की है - इनमे प्रमुख रूप से दो दृष्टिकोण है - (1) पारम्परिक दृष्टिकोण या चिट्ठा आधारित दृष्टिकोण, (2) संचालन चक्र अवधारणा ।
1) पारम्परिक दृष्टिकोण (Traditional Approach) या चिठ्ठा आधारित दृष्टिकोण (Balance Sheet Approach) -
आर्थिक चिट्ठा निश्चित तिथि को बनाया जाता है। उस तिथि को व्यवसाय की कार्यशील पूँजी क्या है, चिट्ठे में प्रदर्शित सम्पत्तियों के मूल्य के आधार पर निर्धारित की जाती है। इस दृष्टि से कार्यशील पूँजी के दो प्रकार हैं (अ) सकल कार्यशील पूँजी (Gross Working Capital) (ब) शुद्ध कार्यशील पूँजी (Net Working capital)
(स) चक्रीय पूँजी (Circulating capital)
(अ) सकल कार्यशील पूंजी के अनुसार व्यवसाय की कार्यशील पूंजी की गणना करने के लिए वर्तमान संपत्ति या चालू सम्पत्तियाँ (current assets) के मूल्य की गणना की जाती हैं।
यानि कि ऐसी संपत्ति जो १२ महीनों के अंदर (accounting period) नगदी में परिवर्तित की जा सकें, जैसे की नगद (cash), बैंक (bank), विपण्य प्रतिभूतियां (marketable securities), स्टॉक (stock), प्राप्य विपत्र (bills receivables), देनदारी (debtors), प्रीपेड व्यय (prepaid expenses), अर्जित आय (accrued incomes) आदि।
मीड, बेकर तथा फील्ड के शब्दों में- “कार्यशील पूँजी से तात्पर्य चालू सम्पत्तियों के योग से है।" बोनविले के शब्दों में - "कोषों की कोई भी प्राप्ति जो सम्पत्तियों में वृद्धि करती है, वह कार्यशील पूँजी में भी वृद्धि करती है, क्योंकि ये दोनों एक ही हैं। "
जे. एस. मिल चालू सम्पत्तियों का योग ही व्यवसाय की कार्यशील पूँजी है।"
सकल कार्यशील पूँजी, कार्यशील पूँजी की परिणात्मक अवधारणा कहलाती है। यह पूँजी की मात्रा पर अधिक बल देती है, उसके ऋणात्मक पहलू पर कम यह चालू सम्पत्ति को बनाए रखने के लिए कुल कोषों की आवश्यकता का विचार है।
कार्यशील पूँजी की इस अवधारणा के पक्ष में निम्न तर्क दिए जा सकते हैं।
i. चालू सम्पत्तियों की व्यवस्था चाहे दीर्घकालीन आधार पर की जावे अथवा चालू देनदारियों के द्वारा इनकी उपयोगिता में कोई कमी नहीं आती।
ii. सम्पूर्ण चालू सम्पत्तियाँ जो व्यवसाय में प्रयुक्त होती है,
संस्था के लाभ अर्जन दर में वृद्धि करती है। अतः चालू सम्पत्तियों का कुल योग कार्यशील या सकल पूँजी कहा जाता है।
iii. स्थिर सम्पत्तियों में विनियोग स्थिर पूँजी कहा जाता है। इसी तरह चालू सम्पत्तियों में विनियोग
कार्यशील पूँजी या चालू पूँजी कहा जाता है।
iv. वित्तीय प्रबंधक का मुख्य उद्देश्य, व्यवसाय की कुल चालू सम्पत्तियों के प्रबंध पर ध्यान केन्द्रित करना है।
V. संक्षेप में - यह विचार वहाँ अधिक उपयुक्त होता है जहाँ सभी योजनाएँ चालू सम्पत्तियों को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है,
लेकिन यह विचार वास्तविक वित्तीय स्थिति को प्रकट नहीं करता क्योंकि चालू दायित्व में वृद्धि कार्यशील पूँजी में कमी लाती है।
(ब) शुद्ध कार्यशील पूंजी के अनुसार वर्तमान संपत्ति या चालू सम्पत्तियाँ (current assets) के मूल्य की गणना कर उसमे से वर्तमान देनदारियों या चालू दायित्व का मूल्य घटाने पर शेष राशि को शुद्ध कार्यशील पूंजी कहते हैं। वर्तमान देनदारी वह होती हैं जिनका भुगतान १२ माह (accounting period) के भीतर करना होता हैं। जैसे की- लेनदार (creditors), देय विपत्र (bills payables), लघु अवधि का बैंक या अन्य उधारी (लोन), बैंक अधिविकर्ष ( bank overdraft), कर का प्रावधान (provision for taxation), बकाया व्यय (outstanding expenses), अग्रिम आय (advanced incomes), आदि।
शुद्ध कार्यशील पूंजी चालू सम्पत्तियाँ - चालू दायित्व Net Working capital Current Assets - Current Liabilities
सकल और शुद्ध कार्यशील पूंजी की अवधारणा दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। सकल कार्यशील पूंजी की अवधारणा स्वामित्व या साझेदारी का व्यवसाय के लिए उपयुक्त है। शुद्ध कार्यशील पूंजी की अवधारणा कंपनी के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं जहाँ स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण का उत्तरदायित्व पृथक हो ।
शुद्ध कार्यशील पूँजी की अवधारणा गुणात्मक अवधारणा कहलाती है। शुद्ध कार्यशील पूँजी धनात्मक भी हो सकती है और ऋणात्मक भी हो सकती है। जब चालू सम्पत्तियाँ, चालू दायित्व से अधिक है तो यह धनात्मक कार्यशील पूँजी कहलाती है। इसके विपरीत जब चालू दायित्व, चालू सम्पत्तियों से अधिक होते है। तो कार्यशील पूंजी ऋणात्मक हो जाती है।
यदि संगठन की वर्तमान संपत्ति वर्तमान देनदारियों से अधिक है कार्यशील पूंजी की दृष्टि से कंपनी की स्थिति सुदृढ़ और संतोषजनक है। यदि संगठन की वर्तमान संपत्ति वर्तमान देनदारियों से कम है, तो कंपनी को अल्पकालिक वित्तपोषण (short-term financing) का सहारा लेना पड़ेगा। यह संगठन की खराब वित्तीय स्थिति को दर्शाता है और भविष्य में आने वाले वित्तीय संकट की चेतावनी देता हैं।
गेस्टनबर्ग के शब्दों में - "चालू सम्पत्तियों के चालू दायित्वों पर आधिक्य को कार्यशील पूँजी कहते हैं।” हॉगलैंड के अनुसार कार्यशील पूँजी का अर्थ चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के पुस्तकीय मूल्यों के अंतर से है। "
शुद्ध कार्यशील पूँजी का एक अर्थ यह भी है कि चालू सम्पत्तियों का वह भाग जो दीर्घकालीन कोषों से पोषित होता है।
इस अवधारणा के पक्ष में निम्न तर्क दिये जा सकते है
i. चालू सम्पत्तियों का चालू दायित्वों पर आधिक्य संस्था की वित्तीय, सदृढ़ता का परिचायक होता है ओर मंदीकाल या विपरीत परिस्थितियों में संस्था के भुगतान करने सामर्थ को दर्शाती है। यह अवधारणा व्यवसाय की वास्तविक वित्तीय स्थिति निर्धारित करने के लिए उपयुक्त है।
ii. अल्पकालीन लेनदारों एवं विनयोग की दृष्टि से, शुद्ध कार्यशील पूँजी की अवधारणा, उन्हें प्रदान करती है।
संक्षेप में जब तक चालू सम्पत्तियों की चालू दायित्वों से तुलना नहीं की जाती है चालू सम्पत्तियों की मात्रा बेहतर वित्तीय स्थिति का परिचायक नहीं हो सकती। चालू दायित्वों का चालू सम्पत्तियों पर आधिक्य कमजोर शोधन क्षमता का परिचायक होता है। अतः शुद्ध कार्यशील पूँजी की अवधारणा महत्वपूर्ण है।
वार्तालाप में शामिल हों