पेरिस शांति सम्मेलन - paris peace conference

पेरिस शांति सम्मेलन - paris peace conference


11 नवंबर, 1918 ई. को प्रथम महायुद्ध की विराम संधि पर मित्र राष्ट्रों के सेनापति मार्शल फॉच एवं जर्मन प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए। प्रथम विश्वयुद्ध में एक ओर अत्यधिक आर्थिक हानि हुई तो दूसरी ओर भारी संख्या में नरसंहार हुआ। इस कारण विश्व के सभी देश शांति स्थापना की ओर अग्रसर हुए। जर्मनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन की 14 सूत्रीय योजना को पढ़कर आत्मसमपर्ण किया था। अब शांति स्थापना एवं परास्त राष्ट्रों के साथ संधियाँ करने हेतु 1919 ई. में पेरिस में शांति सम्मेलन का आयोजन किया गया।


पेरिस शांति सम्मेलन के प्रमुख प्रतिनिधि


पेरिस शांति सम्मेलन में 32 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में पराजित राष्ट्रों जर्मनी, आस्ट्रिया, तुर्की, बल्गारिया को स्थान नहीं दिया गया था। पेरिस शांति सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति के अतिरिक्त 11 देशों के प्रधानमंत्री 12 देशों के विदेश मंत्री एवं अन्य राज्यों के प्रतिनिधि एकत्रित हुए। 1917 में रूस में क्रांति होने के कारण उसे भी इस सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया था। पश्चिमी राष्ट्र साम्यवादी क्रांति के विरोधी जो थे। इस तरह इस सम्मेलन में 32 राज्यों के 70 प्रतिनिधि सम्मिलित हुए।


पेरिस शांति सम्मेलन में प्रमुख प्रतिनिधि निम्न थे-


1) फ्रांस के प्रधानमंत्री क्लीमेंशू फ्रांस का प्रधानमंत्री पेरिस शांति सम्मेलन का सर्वप्रमुख प्रतिनिधि थे। वह इस सम्मेलन का सभापति भी थे। क्लीमेंशू को 'टाइगर ऑफ फ्रांस कहा जाता था। अमेरिका के विदेश मंत्री लैंसिंग के अनुसार "क्लीमेंशु शांति सम्मेलन पर छाया हुआ था उसमें महान नेता के सभी आवश्यक गुण विद्यमान थे।" प्रतिशोध की भावना से ग्रसित क्लीमेंशु जर्मनी को पूर्णतः कुचलना चाहता था ताकि भविष्य में वह फ्रांस के लिए खतरा न बन सके।


2) इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लायड जार्ज : इंग्लैंड का प्रधानमंत्री एक व्यावहारिक एवं खुशमिजाज व्यक्ति था।

वह तीक्ष्ण बुद्धि का स्वामी था। दूसरे व्यक्तियों के चरित्र एवं दुर्बलताओं को वह शीघ्र भाँप लेने में सक्षम था। उनके इस सम्मेलन में भाग लेने के 3 प्रमुख उद्देश्य थे-


i) वह जर्मनी के नौसैनिक एवं थल सैनिक शक्ति को इतना कम कर देना चाहता था कि भविष्य में झलैंड के लिए चुनौती न बन सके।


ii) वह जर्मनी को तो कमजोर करना चाहता था, मगर फ्रांस को भी अधिक शक्तिशाली नहीं बनने देना चाहता था।


iii) युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में लायड जार्ज अधिक से अधिक धन इंग्लैंड के लिए प्राप्त करना चाहता था।


3) अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन का प्रमुख उद्देश्य था यूरोप में आदर्शमय शांति स्थापित करना। युद्ध के दौरान विल्सन ने 8 जनवरी, 1918 को 14 सूत्रीय योजना की घोषणा की थी। जर्मनी ने इन 14 सूत्रों के पालन के आश्वासन पर ही युद्ध विराम लिया था। इसीलिए वुडरो विल्सन चाहता था कि शांति संधियों में इन 14 सूत्रों का पालन हो। विल्सन युद्ध पश्चात् भविष्य में शांति की स्थापना के लिए राष्ट्रसंघ की स्थापना भी कराना चाहता था।


4) इटली के प्रधानमंत्री ओरलैंडो - इटली प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारंभ में जर्मनी एवं आस्ट्रिया की ओर से लड़ा था।

मगर बीच में उसने श्रृंगाल नीति का परिचय देते हुए पाला बदल लिया। उसने इंग्लैंड व फ्रांस से गुप्त संधि कर ली। इन्होंने उसे फ्यूम नगर दिलाने का आश्वासन दिया। इस तरह वह युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर हो गया। पेरिस शांति सम्मेलन में वुडरो विल्सन ने गुप्त संधियों पर अमल नहीं होने की बात कही । इससे इटली की फ्यूम पाने की इच्छा पूर्ण न हो सकी। परिणामस्वरूप ओरलैंडो पेरिस शांति सम्मेलन को बीच में ही छोड़कर वापस आ गया।


5) जापान के सायोन्जी एवं मकिनो जापान के इन प्रतिनिधियों की यूरोपीय समस्याओं में कोई रुचि नहीं थी। वे केवल पूर्वी एशिया में जापानी हितों की रक्षा की खातिर आए थे। चीन में जर्मन प्रभाव वाले शान्तु क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करने में इन्होंने विशेष रुचि दिखाई। यूरोपीय मामलों पर वे मूकदर्शक बने रहे।