कला का अर्थ , परिभाषाएँ

कला का अर्थ , परिभाषाएँ


कला शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की 'कल' धातु में अच् तथा टाप् प्रत्यय लगने से हुई है। संस्कृत कोष में इस शब्द के विविध अर्थ प्राप्त होते हैं- चन्द्रमा का सोलहवाँ अंश, अलंकरण, कुशलता, मेधाविता आदि। वहीं कला को अंग्रेजी में आर्ट (ART) कहा जाता है जो लैटिन भाषा के आर्स (ARS) से बना है, जिसका ग्रीक रूपान्तरण तैकने (TEXVEN) है । इस शब्द का अर्थ शिल्प (CRAFT) या नैपुण्य विशेष है। कुछ विद्वानों के अनुसार कला शब्द दो शब्दों से बना है क + ला यहाँ 'क' का अर्थ है, 'कामदेव' अर्थात् सौन्दर्य और आनन्द - तथा 'ला' का अर्थ है, 'देना'। इस प्रकार सौन्दर्य की अभिव्यक्ति का सुख प्रदान करने वाली वस्तु को कला कहते हैं।


कला की परिभाषाएँ


कला शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में मिलता है। इस शब्द को विद्वानों ने अलग- अलग रूपों में परिभाषित किया है। प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-


"जो सत् है, जो सुन्दर है, वही कला है। "


- रवीन्द्रनाथ टैगोर


"कला अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति है। "


- मैथिलीशरण गुप्त


"जिस अभिव्यंजना में आन्तरिक भावों का प्रकाशन और कल्पना का योग रहता है, वहीं कला है।"


- डॉ. श्यामसुन्दरदास


"कला कल्पना की अभिव्यंजना है।"


- कवि शैले


"कला सत्य की अनुकृति की अनुभूति है।"


- प्लेटो


"कला अनुकरणीय है।"


- अरस्तु


उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट है कि कला शब्द स्वयं में विस्तृत अर्थ को समाहित किये हुए है। अतः इसको परिभाषित करना सरल नहीं है। यही कारण है कि इसकी एक सर्वमान्य परिभाषा अनुपलब्ध है। फिर भी इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जिन क्रियाओं के सम्पादन में कौशल अपेक्षित हो, वह कला है।